क्या इमाम हुसैन की मजलिस में खाना खिलाने या तबर्रूक तैयार करने के लिए ऐसे लोगों के पैसों या चीज़ों का इस्तेमाल जायज़ है जो ख़ुम्स न निकालते हों या जिनके माल के हलाल होने में शक हो?

Question

 कभी कभी कारीगर काम करते वक़्त मज़दूरी की बात नहीं करता और काम लेने वाला भी काम के बाद कारीगर की मज़दूरी के मुतालबे को ज़्यादा समझता है और क़ुबूल नहीं करता, ऐसी हालत में क्या हुक्म है?

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  कभी कभी मस्जिद में सज्दागाह हाथ से छूटकर टूट जाती है या मस्जिद की सफाई के दौरान ही किसी सामान को नुक़सान पहुंच जाता है तो क्या ऐसी स्थिति में हम इस नुक़सान के ज़िम्मेदार हैं?

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