क्या रसूले ख़ुदा स. की बीवियाँ अहलेबैत अ. में शामिल हैं?

Question

जवाब ( 1 )

  1. बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम

    अस्ल में कुछ लोगों को यह शुबहा आयते ततहीर के सन्दर्भ और दूसरी आयतें जिनमें ‘अहेल’ का मतलब नबियों की बीवियाँ हैं, उसकी वजह से पेश आया है.

    यह बात ठीक है कि आम तौर पर जब अहलेबैत कहा जाता है तो उसमें बीवी शामिल होती है जैसा कि क़ुरान में जनाबे इब्राहीम अ. की बीवी के बारे में इरशाद हुआ है: «قالُوا اَ تَعْجَبینَ مِنْ اَمْرِ اللهِ رَحْمَتُ اللهِ وَ بَرَکاتُهُ عَلَیْکُمْ اَهْلَ الْبَیْتِ اِنَّهُ حَمیدٌ مَجید»

    फ़रिश्तों ने कहा: ऐ अहलेबैत! तुम अपने ऊपर अल्लाह की रहमत और बरकत से तअज्जुब करते हो,बेशक वह हमीद और मजीद है. (सूरए हूद, आयत 73)

    लेकिन आयए ततहीर में जो लफ़्ज़े अहलेबैत इस्तेमाल हुआ है उसका मस’अला अलग है. दूसरी आयतों से उसकी तुलना करना सही नहीं है.

    सूरए अहज़ाब आयत न. 33 में इरशाद होता है: وَ قَرْنَ في‏ بُيُوتِکُنَّ وَ لا تَبَرَّجْنَ تَبَرُّجَ الْجاهِلِيَّةِ الْأُولى‏ وَ أَقِمْنَ الصَّلاةَ وَ آتينَ الزَّکاةَ وَ أَطِعْنَ اللَّهَ وَ رَسُولَهُ إِنَّما يُريدُ اللَّهُ لِيُذْهِبَ عَنْکُمُ الرِّجْسَ أَهْلَ الْبَيْتِ وَ يُطَهِّرَکُمْ تَطْهيراً

    और (ऐ नबी स. की बीवियों)!तुम अपने घरों में रहो और अरब की जाहिलियत के रस्म व रिवाज की तरह लोगों के सामने न निकलो, (पाकदामनी का ख़याल रखो), नमाज़ क़ाएम करो और ज़कात अदा करो, साथ ही ख़ुदा और रसूल की इताअत करो, बस अल्लाह का इरादा यह है कि (ऐ अहलेबैते नबी स.) तुमसे हर बुराई को दूर रखे और उस तरह पाक व पाकीज़ा रखे जो पाक व पाकीज़ा रखने का हक़ है.

    यह बात सही है कि ये आयत, पैग़म्बर स. की अज़वाज (बीवियों) की शान में नाज़िल होने वाली आयतों के बीच में है लेकिन इस आयत का अंदाज़ बदला हुआ है जिससे अंदाज़ा होता है कि इस आयत का एक दूसरा मक़सद है क्योंकि इससे पहले और बाद वाली आयात में “स्त्रीलिंग बहुवचन” के शब्द प्रयोग हुए हैं लेकिन इस आयत में “पुर्लिंग बहुवचन” का शब्द इस्तेमाल हुआ है.

    आयत के शुरू में नबी की बीवियों को संबोधित किया गया और उनको हुक्म दिया गया कि वे अपने घरों में रहें और अरब की जाहिलियत के रस्म व रिवाज की तरह लोगों के सामने न निकलें, पाकदामनी का ख़याल रखें, नमाज़ क़ाएम करें और ज़कात अदा करें साथ ही ख़ुदा और रसूल स. की इताअत करें.

    وَقَرْنَ فِی بُیُوتِکُنَّ وَلاَتَبَرَّجْنَ تَبَرُّجَ الْجَاہِلِیَّةِ الْاٴُولَی وَاٴَقِمْنَ الصَّلَاةَ وَآتِینَ الزَّکَاةَ وَاٴَطِعْنَ اللهَ وَرَسُولَہُ

    आयत के इस हिस्से में सारे के सारे 6 सर्वनाम “स्त्रीलिंग बहुवचन” के प्रयोग हुए हैं. (ध्यान दीजिये)

    लेकिन इसके बाद लहजा बदल जाता है और इरशाद होता है कि अल्लाह का “सिर्फ़” इरादा यह है कि तुम अहलेबैत से रिज्स को दूर रखे और तुम्हे पूरे तरीक़े से पाक रखे: إِنَّمَا یُرِیدُ اللهُ لِیُذْہِبَ عَنْکُمْ الرِّجْسَ اٴَہْلَ الْبَیْتِ وَیُطَہِّرَکُمْ تَطْہِیرًا

    आयत के इस हिस्से में दोनों सर्वनाम “पुर्लिंग बहुवचन” के प्रयोग हुए हैं.

    यह बात सही है कि आयत का सन्दर्भ कुल मिलाकर एक अर्थ देता है लेकिन यह उस समय होता है जब उसके विपरीत कोई संकेत और दलील न हो इसलिए जो लोग आयत के इस हिस्से को भी पैग़म्बर की बीवियों की शान में समझते हैं उनका नज़रिया आयत के प्रत्यक्ष शब्दों और उसमें मौजूद संकेत के विपरीत है यानी इन दोनों हिस्सों में सर्वनाम में अंतर है इसलिए दो अलग-अलग अर्थ हैं.

    इसके अलावा इस आयत की तफ़सीर में बड़े बड़े सुन्नी और शिया उलमा ने ख़ुद पैग़म्बरे अकरम स. की कई हदीसें बयान की है और शिया सुन्नी दोनों मज़हब के विश्वस्त स्रोतों में इस बात को क़ुबूल किया गया है. इन रिवायतों की संख्या भी बहुत ज़्यादा है.

    यह सारी रिवायतें बयान करती हैं कि उपर्युक्त आयत, पैग़म्बरे अकरम स., हज़रत अली अ., हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स., हज़रत इमाम हसन अ., हज़रत इमाम हुसैन अ. की शान में नाज़िल हुई है, (नकि नबी स. की बीवियों की शान में) जैसा कि बाद में विस्तार के साथ बयान किया जायेगा.

    आयत में “इन्नमा” शब्द का प्रयोग किया गया है जिसका अर्थ ‘केवल’ है जो इस बात का तथ्य है कि इस आयत में आले नबी स. के लिए जो ख़ास अज़मत बयान की गयी है वह किसी दूसरे के लिए नहीं है.

    इसके अलावा जो रिवायतें इस बात पर साक्ष्य हैं कि यह आयत पैग़म्बरे अकरम स., हज़रत अली अ., हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.,इमाम हसन अ.,और इमाम हुसैन अ. से मख़सूस है उनकी संख्या बहुत अधिक है. केवल तफ़सीरे दुर्रुल मंसूर में 18 हदीसें ज़िक्र हुई हैं, जिनमें से 5 रिवायतें उम्मे सलमा से, 3 अबू सईद ख़ुदरी से, 1 आयशा से, 1 अनस से, 2 रिवायतें इब्ने अब्बास से, 2 रिवायतें अबिल हमरा से, 1 रिवायत वाएला बिन असक़ा से, 1 रिवायत साद से, 1 रिवायत ज़ह्हाक बिन मुज़ाहिम से और 1 रिवायत ज़ैद बिन अरक़म से नक़्ल की गयी है.(1)

    अल्लामा तबातबाई ने तफ़सीरे अल-मीज़ान में इस बारे में बयान होने वाली रिवायात की संख्या 70 तक बयान की है.

    वह फ़रमाते हैं कि इस सिलसिले में अहले सुन्नत के ज़रिये नक़्ल होने वाली रिवायात शिया तरीक़ों से भी ज़्यादा हैं. उसके बाद उन्होंने उपरोक्त नामों के अलावा भी बहुत से नाम गिनाए हैं.

    हम यहाँ पर इन रिवायात और जिन किताबों में ये रिवायात नक़्ल हुई हैं उनके कुछ नमूने पेश कर रहे हैं ताकि “असबाबुन-नुज़ूल” में “वाहिदी” की बात स्पष्ट हो जाये, जो एक वास्तविकता है. वह फ़रमाते हैं:

    إنَّ الٓا یةَ نَزَلَتْ فِی النَّبیِّ(ص) ،وعَلیّ و فَاطِمَةَ والحَسنین (ع) خاصة لایشارکھُم فیھا غیرَھُم

    यह आयत पैग़म्बरे अकरम स., अली अ., फ़ातिमा स. और हसनैन अ. से मख़सूस (विशेष) है और कोई दूसरा इसमें शामिल नहीं है.(2)

    इन हदीसों का सारांश 4 हिस्सों में बयान किया जा सकता है:

    1. जिन हदीसों को नबी स. की कुछ बीवियों ने बयान किया है जो स्पष्ट रूप से कहती हैं कि जिस वक़्त आनहज़रत स. ने इस आयत की गुफ़्तुगु फ़रमाई तो आप स. से पूछा गया कि क्या हम लोग भी इस आयत में शामिल हैं? तो आनहज़रत स. ने फ़रमाया: तुम ख़ैर पर हो लेकिन इस आयत में शामिल नहीं हो.

    जैसा की सा’अलबी अपनी तफ़सीर में उम्मे सलमा से नक़्ल करते हैं कि पैग़म्बरे अकरम स. अपने हुजरे में तशरीफ़ फ़रमा थे कि जनाबे फ़ातिमा स., आप स. की ख़िदमत में खाना लायीं तो आप स. ने फ़रमाया: अपने शौहर और दोनों बेटों हसन व हुसैन को भी बुला लाओ और जब ये सब हज़रात जमा हो गए तो सबने साथ में खाना नोश किया, उसके बाद पैग़म्बर स. ने उन पर अपनी अबा डाली और फ़रमाया: اَللَّھُمَ! إِنَّ ھولاء اٴہلَ بَیتِی وَ عِتْرتِی فَاَذْھِب عَنھُم الرَّجس وطھّرھُم تَطْھِیْراً

    ख़ुदावंदा! ये मेरे अहलेबैत अ. और मेरी इतरत हैं इनसे रिज्स (हर तरह की नजासत) और बुराई को दूर फ़रमा और इन्हें पाक व पाकीज़ा रख जैसा कि पाक रखने का हक़ है.

    उसी मौक़े पर आयए ततहीर नाज़िल हुई, मैं (उम्मे सलमा) ने कहा या रसूलल्लाह स.! क्या मैं आपके साथ हूँ? तो आनहज़रत स. ने फ़रमाया: तुम ख़ैर पर तो हो (लेकिन इनमें शामिल नहीं हो).

    अहले सुन्नत के यही आलिमे दीन सा’अलबी जिनका ज़िक्र ऊपर किया गया है, हज़रत आयशा से इस तरह नक़्ल करते हैं कि जब लोगों ने जंगे जमल और उस जंग में उनकी शिरकत के बारे में पूछा तो (बहुत अफ़सोस के साथ) जवाब दिया कि यह एक तक़दीरे इलाही थी! और जब हज़रत अली अ. के बारे में सवाल किया गया तो कहा: تساٴلینی عن اٴحبِ النَّاسِ کان إلیٰ رسولِ الله وَ زوجٌ اٴحب النَّاسِ کانَ إلیٰ رسولِ الله، لقد راٴیْت علیاً و فَاطمَة و حسناً وحسیناً و جمع رسول الله بثوبٍ علیھم ثم قال:اللّٰھم ھولاء اٴہل بیتی و حامتی فاذّھب عنھم الرِّجس و طھّرھم تطھیراً، قالت : فقلتُ یا رسولَ الله ! اٴنا من اٴھلک قال تنحّی فَإنَّکِ إلیٰ خَیر

    मुझसे उस इन्सान के बारे में पूछते हो जो पैग़म्बरे अकरम स. के नज़दीक सबसे ज़्यादा महबूब था, और उसके बारे में सवाल करते हो जो रसूले ख़ुदा स. की चहेती बेटी का शौहर है, मैंने ख़ुद अपनी आँखों से देखा है कि पैग़म्बरे अकरम स. ने अली अ., फ़ातिमा स., हसन अ. और हुसैन अ. को एक चादर के नीचे जमा किया और फ़रमाया: पालने वाले! ये मेरे अहलेबैत और मेरे हामी हैं इनसे रिज्स और बुराई को दूर रख और इनको पाक व पाकीज़ा क़रार दे, उस वक़्त मैंने कहा: ऐ रसूले ख़ुदा स.! क्या मैं भी इन (अहलेबैत अ.) में शामिल हूँ? तो आनहज़रत स. ने फ़रमाया: तुम यहाँ से चली जाओ तुम ख़ैर पर हो (लेकिन इनमें शामिल नहीं हो).(3)

    इस तरह की हदीसें स्पष्ट रूप से बयान कर रही हैं कि रसूले ख़ुदा स. की बीवियाँ अहलेबैत अ. में शामिल नहीं हैं.

    2. हदीसे किसा बहुत सी किताबों में अलग-अलग अलफ़ाज़ में बयान हुई है, जिनका सामान्य विवरण यह है कि पैग़म्बरे अकरम स. ने हज़रत अली अ., हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स., और इमामे हसन व इमामे हुसैन अ. को एक जगह इकठ्ठा किया (या ये हज़रात ख़ुद आप स. की ख़िदमत में आये), पैग़म्बर स. ने अपनी अबा (या चादर) उन पर डाली और दुआ की: ख़ुदाया! ये मेरे अहलेबैत अ. हैं इनसे हर तरह की नजासत और बुराई को दूर रख और इन्हें पाक व पाकीज़ा रख जैसा कि पाक व पाकीज़ा रखने का हक़ है. और उसी मौक़े पर यह आयत नाज़िल हुई.

    ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस हदीस को सहीह मुस्लिम, मुस्तदरके हाकिम, सुनने बैहक़ी, तफ़सीरे इब्ने जुरैर और तफ़सीरे सियूती अद-दुर्रुल मंसूर में बयान किया गया है. (4)

    हाकिमे हसकानी ने भी “शवाहिदुत-तंज़ील” में इस हदीस को बयान किया है (5), सहीह तिरमिज़ी में भी यह हदीस कई बार बयान हुई है जिनमें से एक जगह “उमर बिन अबी सलमा” और दूसरी जगह “उम्मे सलमा से नक़्ल किया गया है”(6)

    एक दूसरा बिंदु यह है कि फ़ख़्रे राज़ी ने आयए मुबाहिला (सूरए आले इमरान आयत न. 61) के अंतर्गत इस हदीस (हदीसे किसा) को नक़्ल करने के बाद इज़ाफ़ा किया है: وَاعلمْ إنَّ ھٰذِہِ الرِّوایةُ کالمُتَّفقِ عَلیٰ صحتِھا بَین اٴہلَ التَفْسِیرِ وَالْحَدِیثِ

    मालूम होना चाहिए कि यह उस रिवायत की तरह है जिसे सारे मुफ़स्सेरीन और मुहद्देसीन मानते हों.(7)

    इमाम अहमद बिन हंबल ने अपनी मुसनद में इस हदीस को अलग-अलग सनद के साथ नक़्ल किया है.(8)

    3. बहुत सी रिवायात में यह भी बयान हुआ है कि इस आयत के नाज़िल होने के बाद कुछ महीनों तक (कुछ रिवायात में 6 महीने तक, कुछ में 8 महीने तक और कुछ में 9 महीने तक) नमाज़े फ़ज्र के वक़्त पैग़म्बरे अकरम स. जब फ़ातिमा स. के दरवाज़े से गुज़रते थे तो फ़रमाया करते थे: الصلاة! یا اٴہلَ البیتِ إِنَّمَا یُرِیدُ اللهُ لِیُذْہِبَ عَنْکُمْ الرِّجْسَ اٴَہْلَ الْبَیْتِ وَیُطَہِّرَکُمْ تَطْہِیرًا

    ऐ अहलेबैत अ.! नमाज़ का वक़्त है, उसके बाद इसी आयए ततहीर की तिलावत फ़रमाते थे.

    इस हदीस को मशहूर व मारूफ़ मुफ़स्सिर हाकिमे हसकानी ने अपनी तफ़सीर “शवाहिदुत-तंज़ील” में अनस बिन मालिक से नक़्ल किया है.(9)

    बहरहाल इतने समय तक पैग़म्बर स. का हर दिन इसी अमल को दोहराना बताता है कि वह अपने अमल से यह बात बिलकुल स्पष्ट कर देना चाहते थे कि “अहलेबैत अ.” का अर्थ केवल इसी घर के रहने वाले हैं ताकि आने वाले समय में किसी के लिए कोई संदेह व शंका बाक़ी न रहे.

    4. वह कई रिवायतें जो पैग़म्बरे अकरम स. के मशहूर व मारूफ़ सहाबी अबू सईद ख़ुदरी के ज़रिये नक़्ल हुई हैं और आयए ततहीर की तरफ़ इशारा हैं, उनमें स्पष्ट रूप से बयान हुआ है कि: نَزلَتْ فِی خَمسةٍ فِی رَسولِ اللهِ وَ عَلیّ وفاطمة والحَسنِ وَالحُسَینِ علَیھُمَ السّلام

    यह आयत रसूले ख़ुदा स., हज़रत अली अ. हज़रत फ़ातिमा स., इमाम हसन अ. और इमाम हुसैन अ. की शान में नाज़िल हुई है. (10)

    संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि यह हदीसें इस्लामी विश्वस्त सूत्रों में इतनी अधिक संख्या में मौजूद हैं कि इसमें किसी प्रकार का संदेह व शंका नहीं रह जाती कि इस आयत में “अहलेबैत अ.” का अभिप्राय केवल ये पांच लोग हैं इनके अलावा कोई और नहीं है और इसमें नबी स. की बीवियाँ शामिल नहीं हैं.

    हवाले:

    अद-दुर्रुल मंसूर, जि.5,पे.196 व 199
    अल-मीज़ान,जि.16,पे.311
    मजमउल बयान, अल्लामा तबरसी, सूरए अहज़ाब आयत न. 33 के अंतर्गत, शवाहिदुत-तंज़ील, जि.2,पे.56
    सहीह मुस्लिम,जि.4,पे.1883, हदीस 2424 (फ़ज़ाएले अहलेबैते नबी स. का अध्याय)
    शवाहिदुत-तंज़ील, जि.2,पे.33,हदीस 376
    सुनने तिरमिज़ी, जि.5,पे.699,हदीस 3781, (फ़ज़ाएले फ़ातिमा स. का अध्याय), प्रकाशन: दार एहयाइत-तुरास
    तफ़सीरे फ़ख़्रे राज़ी,जि.8,पे.80
    मुसनदे अहमद,जि.1,पे.330,जि.4,पे.107,जि.6,पे.292 (फ़ज़ाएले ख़मसा से नक़्ल करते हुए, जि.1,पे.276)
    शवाहिदुत-तंज़ील, जि.2,पे.11,12,13,14,15,92 (इस किताब में इस हदीस को अलग-अलग सनद के साथ ज़िक्र किया गया है)
    शवाहिदुत-तंज़ील, जि.2,पे.24-27 हदीस 660,661,664,695

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