हज़रत अली अ. ने अपने दौर में मुत’आ को लागू क्यों नहीं कराया?
Question
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जवाब ( 1 )
बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम
यह सवाल ही सिरे से ग़लत है क्योंकि कोई झूठी से झूठी रिवायत ऐसी नहीं मिलती कि हज़रत अली अ. ने मुत’आ को हराम किया हो, यह काम तो मुसलमानों के दूसरे ख़लीफ़ा ने किया था वो भी इस वज़ाहत और तौहीन के साथ कि मुत’आ रसूल स. के दौर में हलाल था लेकिन मैं उसे हराम करता हूँ, इस सिलसिले में उनका साफ़ जुमला है जो बहुत ही मशहूर भी है: متعتان كانتا على عهد رسول الله أنا اُحرّمهما واُعاقب عليهما दो मुत’आ रसूलुल्लाह स. के दौर में जाएज़ थे, मैं उन्हें हराम करता हूँ और उनके अंजाम देने पर सज़ा दूँगा.
वह मुत’आ जो रसूले ख़ुदा स. के दौर में यहाँ तक कि पहले ख़लीफ़ा और बल्कि ख़ुद दूसरे ख़लीफ़ा के अच्छे ख़ासे वक़्त तक जाएज़ था, उसे उन्होंने हराम कर दिया.
(हवाले: तफ़सीरे अल-राज़ी, जि. 2, पे. 167, और जि. 3, पे. 201 व 202…, शरहे नहजुल बलाग़ा, इब्ने अबिल हदीद, जि. 12, पे. 251 व 252 और जि. 1, पे. 182, अल-बयान वल-तिब्यान, अल-जाहिज़, जि. 2, पे. 223, अह्कामुल क़ुरान, लेखक जस्सास, जि. 1, पे. 342 व 345 और जि. 2, पे. 184, तफ़सीरे क़ुर्तबी, जि. 2, पे. 270 और दूसरे प्रकाशन में, जि. 2, पे. 39, अल-मब्सूत, सरख़्सी हनफ़ी, बाबुल क़ुरान, चैप्टर हज, ज़ादुल म’आद, इब्ने क़य्यिम, जि. 1, पे. 444, और दूसरे प्रकाशन में जि.2, पे. 205, हिस्सा इबाहा मुत’अतुन निसा, कन्ज़ुल उम्माल, जि. 8, पे. 293 व 294, ज़ौउश-शम्स, जि. 2, पे. 94, सुनने बैहक़ी, जि. 7, पे. 206, अल-ग़दीर, अल्लामा अमीनी, जि.6, पे. 211, अल-मुग़नी, इब्ने क़ेदामा, जि. 7, पे. 527, अल-मोहल्ला, इब्ने हज़्म, जि.7,पे.107, शरहे म’आनीउल आसार, मनासिके हज का हिस्सा, तहावी, पे. 374, मुक़द्दमा मिर’आतुल उक़ूल, जि.1,पे. 200)
अब यह अलग मस’अला है कि उन्होंने क्यों हराम किया, बहरहाल वजह जो भी रही हो यह बात तो तय है कि मुत’आ को ख़लीफ़-ए-दोव्वुम ने हराम किया, इस हिसाब से उन्होंने रसूलुल्लाह स. के हलाल और हराम में छेड़छाड़ की जबकि हज़रत अली अ. के दौरे ख़िलाफ़त में वही शरीयत लागू थी जो रसूले ख़ुदा ने छोड़ी थी और उनके दौर में थी, रसूलुल्लाह स. की शरीयत में मुत’आ जाएज़ है, न हराम है, न वाजिब है बल्कि जाएज़ है, ख़ास कर हज़रत अली अ. ने बहुत पहले ही ख़िलाफ़त की एडवाइज़री समिति में साफ़ और स्पष्ट रूप से ऐलान कर दिया था कि मेरी हुकूमत की बुनियाद सुन्नते शैख़ैन नहीं बल्कि क़ुरान और सुन्नते रसूल स. होगी और आपने सख़्ती से सुन्नते शैख़ैन को रद्द कर दिया था, इस हक़ीक़त की रौशनी में ऐतराज़ करने वाले को पहले यह साबित करना होगा कि हज़रत अली अ. ने भी मुत’आ को हराम क़रार दिया तब कहीं वह यह ऐतराज़ कर सकता है. इस लिहाज़ से एतराज़ करने वालों का एतराज़ ही सही नहीं है