जवाब ( 1 )

  1. ज़ोहर की नफ़्लें नमाज़ें ज़ोहर से पहले पढ़ी जाती हैं। और जहां तक मुम्किन हो उसे ज़ोहर की नमाज़ से पहले पढ़ा जाए। और उसका वक़्त अव्वले ज़ोहर से लेकर ज़ोहर की नमाज़ अदा करने तक बाक़ी रहता है।

    लेकिन अगर कोई शख़्स ज़ोहर की नफ़्लों को उस वक़्त तक लेट कर दे कि शाखिस के साए की वह मिक़्दार जो ज़ोहर के बाद पैदा हो सात में से दो हिस्सों के बराबर हो जाए मसलन शाखिस की लम्बाई सात बालिश्त और साए की मिक़्दार दो बालिश्त हो तो इस सूरत में बेहतर यह है कि इंसान ज़ोहर की नमाज़ पढ़े।

    हवाला : तौज़ीहुल मसाइल, आयतुल्लाह सीस्तानी, मसला 776.

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