मसाएब पढ़ने वाले कुछ ज़ाकिर और मर्सिया ख़्वां अपनी मजलिसों और तक़रीरों में अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम की इनायतों और करामतों के बारे में मुख़्तलिफ़ ख़्वाबों का हवाला देते हैं, क्या उन ख़्वाबों को बयान करना और उन पर यक़ीन करना जायज़ है?

Question

जवाब ( 1 )

  1. उन्हें बयान करने में कोई हरज नहीं है लेकिन बुनियादी तौर पर ख़्वाबों शरई दलील क़रार नहीं दिया जा सकता और उनके ज़रिए कोई फ़रीज़ा वाजिब नहीं होता। मुनासिब यह है कि धर्म की बातें क़ुरआन की आयतों, ठोस रिवायतों तथा अक़्ल के मुताबिक़ बयान हों
    हवाला :https://khamenei.ir

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