जवाब ( 1 )

  1. बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम

    क़ुराने मजीद के 29 सूरों के शुरू में कुछ हुरूफ़ मौजूद हैं, जिनकी कुल संख्या 78 है और अगर उसमें से रिपीट होने वाले हुरूफ़ को हटा दिया जाये तो 14 हुरूफ़ बचते हैं जो अरबी भाषा की वर्णमाला के 28 शब्दों की आधी संख्या है. इन हुरूफ़ को “हुरूफ़े मुक़त्तआत” या “हुरूफ़े नूरानी” कहा जाता है.

    हुरूफ़े मुक़त्तआत के बारे में अलग-अलग नज़रिये पेश किये गए हैं:

    1.यह आसमानी किताब जिसने सारे अरब और अरब के अलावा सुखनवरों को हैरत में डाल दिया और स्कॉलर्स को इसका जवाब लाने से आजिज़ कर दिया है, उन्हीं वर्णमाला से बनी है जो आम लोगों के पास है.

    2.हुरूफ़े मुक़त्तआत क़ुराने मजीद के “मुताशाबेहात” में से हैं कि जो हल नहीं किये जा सकते और इनका इल्म किसी आम इन्सान को नहीं है बल्कि इनके जानने का रास्ता आम लोगों के लिए बंद है.

    3.इनका कोई अर्थ नहीं, इन हुरूफ़ को कुछ सूरों के शुरू में लाने का फ़लसफ़ा सुनने वालों का ध्यान आकर्षित करना है.

    4.यह हुरूफ़ उस सूरे में ज़्यादा इस्तेमाल होने की निशानी है और यह एक मोजिज़ा है. बदरुद्दीन रज़क्शी कहते हैं: “इन हुरूफ़ का एक गहरा रहस्य यह है कि जिस सूरे के शुरू में यह हुरूफ़ आयें उस सूरे के अक्सर अलफ़ाज़ इन्हीं हुरूफ़ से मिलकर बनते हैं जैसे हर्फ़े “क़ाफ़” सूरए “क़ाफ़” और सूरए “हा मीम ऐन सीन क़ाफ़” में हर सूरे में 57 बार रिपीट हुआ है. एक मिस्री स्कॉलर ने इस इस नज़रिये की बुनियाद पर कंप्यूटर के ज़रिये एक जटिल आकलन किया है और उसका नतीजा यह निकला है कि यह हुरूफ़ उस सूरे में ज़्यादा इस्तेमाल होने की निशानी हैं और यह बज़ाते ख़ुद एक मोजिज़ा है.

    5.यह हुरूफ़ क़सम खाने के लिए इस्तेमाल हुए हैं. इन हुरूफ़ की क़सम खाना इस वजह से है कि सारी ज़बानों में अस्ले कलाम इन्हीं हुरूफ़ की बुनियाद पर है.

    6.इन हुरूफ़ और इनसे मुताल्लिक़ सूरों के बीच एक राबेता पाया जाता है, क्योंकि मुशाबेह हुरूफ़े मुक़त्तआत से शुरू हुए सूरों में ग़ौरो फ़िक्र करने और ध्यान देने से पता चलता है कि यह सूरे विषय-वस्तु के हिसाब से एक दूसरे के समान हैं.

    7.कुछ हुरूफ़े मुक़त्तआत अस्माए हुसनाए इलाही के किसी इस्मे आज़म की निशानी और इशारा हैं और उनमें से कुछ पैग़म्बरे अकरम स. के इस्मे मुबारक की तरफ़ इशारा और कोड हैं, ख़ुदा के नामों में से हर एक नाम कुछ हुरूफ़ से बने हैं.

    इमाम सादिक़ अ. से रिवायत है: सूरए बक़रह के शुरू में “अलिफ़ लाम मीम” का मतलब “अनल्लाहुल मलिक” है लेकिन सूरए आले इमरान के शुरू में मौजूद “अलिफ़ लाम मीम” का मतलब “अनल्लाहुल मजीद” है और…

    8.यह हुरूफ़ इस्मे आज़मे इलाही का हिस्सा हैं.

    9.यह हुरूफ़ सूरे में मौजूद आयतों की संख्या की तरफ़ इशारा है.

    10. यह हुरूफ़ सूरे के विषय वस्तु और संदेश का संक्षेप हैं.

    11. हर सूरे के हुरूफ़े मुक़त्तआत, उस सूरे का नाम हैं, जैसे सूरए “यासीन”, “ताहा”, “साद” में से हर एक अपने हुरूफ़े मुक़त्तआत के नाम से जाने जाते हैं.

    12. यह हुरूफ़, उम्मते मुस्लिमा की बक़ा की मुद्दत की तरफ़ इशारा हैं.

    13. यह हुरूफ़ ख़ुदा और उसके रसूल स. के बीच राज़ हैं, इनके बारे में किसी को कुछ नहीं मालूम है.

    “हुरूफ़े मुक़त्तआत” या “हुरूफ़े नूरानी” जैसा कि बयान किया गया 14 हैं और वह यह हैं:

    ا ح ر س ص ط ع ق ک ل م ن ہ ی

    यह हुरूफ़े मुक़त्तआत हैं, इन बिखरे हुए हुरूफ़ को अगर एक दूसरे के साथ जोड़ा जाए तो यह जुमला बन सकता है:

    صراط على حق نمسکہ

    अली अ. का रास्ता हक़ है, हम उस से वाबस्ता (जुड़े हुए) हैं

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