जवाब ( 1 )

  1. जब तक इंसान ज़िन्दा है ख़्वाह वह अपनी क़ज़ा नमाज़ें पढ़ने से क़ासिर ही क्यों न हो कोई दूसरा शख़्स उसकी क़ज़ा नमाज़ें नहीं पढ़ सकता ।

    हवाला :  तौजीहुल मसाइल, आयतुल्लाह सीस्तानी, मसला 1396

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