जवाब ( 1 )

  1. अगर किसी शख़्स को एहतिमाल हो कि क़ज़ा नमाज़ उसके ज़िम्मे है या जो नमाज़ें पढ़ चुका है वह सहीह नहीं थीं तो मुस्तहब है कि एहतियातन उन नमाज़ों की क़ज़ा करे।

    हवाला :  तौजीहुल मसाइल, आयतुल्लाह सीस्तानी, मसला 1383

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