जवाब ( 1 )

  1. बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम

    1. जिहादे इब्तेदाई – प्रारंभिक जिहाद (जिहाद में पहल करना) 2. जिहादे दिफ़ाई – रक्षात्मक जिहाद (हिफाज़त के लिए लड़ना)

    जिहादे इब्तेदाई: यह जिहाद इस्लाम की दावत और तब्लीग़ की राह में आने वाले रुकावटों को दूर करने के लिए किया जाता है. मतलब दुश्मनों की ओर से हमले के बग़ैर, दीने इस्लाम की तब्लीग़ की राह में मौजूद रुकावटों को दूर करने, लोगों के मुसलमान होने की राह में मौजूद अड़चनों को हटाने, इस्लाम की तब्लीग़ और तरवीज, हक़ की सर बलंदी, इलाही शआयर का क़याम, काफिरों और मुशरेकीन की हिदायत, शिर्क और बुत परस्ती को खत्म करने के लिए इस्लामी फ़ौज जिहाद करती है.
    सच्चाई यह है कि जिहादे इब्तेदाई का मक़सद मुल्कों को जीतना नहीं है बल्कि लोगों के मौलिक अधिकारों की हिफाज़त करना है जो कुफ्र, शिर्क और साम्राज्यवादी ताक़तों के सबब ख़ुदा परस्ती, तौहीद और अदालत से महरूम हैं. यह नबी ए अकरम स.अ. या मासूम इमामों के ज़माने से मख़सूस नहीं है. हालात को मद्दे नज़र रखते हुए मुसलमानों की विलायत का ज़िम्मेदार जामेउस शरायत मुज्तहिद भी इसका हुक्म दे सकता है.

    2. जिहादे दिफ़ाई (रक्षात्मक जिहाद)
    यह जिहाद दुश्मन के हमले से बचने के लिए अपनी हिफाज़त की ख़ातिर किया जाता है और यह तब होगा जब दुश्मन मुस्लिम इलाक़ों पर हमला करते हुए सियासी, फौजी, सांस्कृतिक या आर्थिक क़ब्ज़ा हासिल करना चाहता है. इस्लाम और मुसलमानों की हिफाज़त वाजिब है और इस के लिए वालिदैन की इजाज़त की ज़रूरत नहीं है. फिर भी जहाँ तक मुमकिन हो वालिदैन की रिज़ायत हासिल करना चाहिए.

    हवाला : आयतुल्लाह ख़ामेनई, तालीमे अहकाम, बहस जिहाद, अध्याय सात, पेज 423

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