हदीस की अलग-अलग शब्दावली में क्या अंतर है?
Question
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जवाब ( 1 )
बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम
हदीस: इस बारे में दो नुक्ते अर्ज़ हैं:
रसूल स., अइम्मा-ए-अतहार अलैहेमुस्सलाम बल्कि सारे मासूमीन अ. जिसमे हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स. भी शामिल हैं इनके क़ौल, फ़े’ल और तक़रीर को हदीस कहा जाता है.
क़ौल: यानी जो बातें उन्होंने इरशाद फ़रमाई हैं.
फ़े’ल: यानी वो काम जो उन्होंने अंजाम दिए हैं.
तक़रीर: यानी वो बातें या काम जो दूसरों ने मासूमीन अ. की मौजूदगी में कही या की हैं और मासूमीन अ. ने उसे ग़लत नहीं कहा गोया उसकी ताईद की, अलबत्ता इसके साबित होने के लिए कई शर्तें भी हैं जिनमें से एक यह है कि मासूमीन अ. तक़य्ये की हालत में न हों.
मासूमीन अ. के क़ौल, फ़े’ल और तक़रीर को हदीस कहते हैं और जब यह साबित हो जाये तो हुज्जत है.
ब) सहाबा-ए-केराम की हदीस को “मौक़ूफ़” और ताबेईन की हदीस को “मक़तू’अ” कहा जाता है गोया उन पर भी हदीस का इतलाक़ होता है हालाँकि उनका हुज्जत होना साबित नहीं है.
रिवायत: परिभाषा के लिहाज़ से हदीस और इसका मतलब एक ही है अगरचे हदीस के मुक़ाबले में रिवायत का इस्तेमाल होता है.
सुन्नत: हदीस के मुक़ाबले में आम मफ़हूम है क्योंकि क़ौल,फ़े’ल और तक़रीर को शामिल होने के साथ साथ नबी स. के जिस्मानी और अख़लाक़ी सिफ़ात के बयान को भी शामिल है.
ख़बर: इसके बारे में तीन नज़रिये पाए जाते हैं:
अक्सर मुहद्देसीन के लिहाज़ से ख़बर हदीस ही के माना में है इसीलिए सिर्फ़ मासूमीन अ. की हदीस पर अमल करने वालों को “अख़बारी” कहा जाता है.
ब) कुछ का मानना है कि ख़बर हदीस के मुक़ाबले में बहुत आम मफ़हूम है जोकि हर आम इन्सान की बात और किरदार के बारे में किसी तरह के बयान को शामिल है.
स) कुछ का कहना है कि ख़बर और हदीस में आपस में कोई ताल्लुक़ नहीं है बल्कि हर तारीख़ी हिकायत को ख़बर कहा जाता है यहाँ तक कि इस्लाम से पहले की उम्मतों की हिकायत को भी ख़बर कहा जाता है.
असर के बारे में भी दो नज़रिये पाए जाते हैं:
आम नज़रिये के मुताबिक़, असर हदीस का पर्यायवाची है. इसीलिए मुहद्दिस को असरी भी कहा जाता है.
ब) कुछ लोगों के मुताबिक़ सहाबा की (मौक़ूफ़) और ताबेईन की (मक़तू’अ) हदीसों को असर कहा जाता है.
हदीसे क़ुद्सी: अल्लाह का वह कलाम है जो क़ुरान के अलावा बिना मोजिज़े और चैलेंज के पैग़म्बर की ज़बानी बयान हुआ है.
हवाला:
किताब आशनाई बा उलूमे हदीस, अली नसीरी