जवाब ( 1 )

  1. बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम

    सलामुन अलैकुम व रहमतुल्लाह

    अगर किसी औरत को शौहर दीनी अहकाम को कोई ख़ास अहमियत न देता हो, मसलन नमाज़ न पढ़ता हो तो उसकी ज़िम्मेदारी है कि हर मुमकिन तरीक़े से शौहर की इस्लाह की कोशिश करे. लेकिन किसी भी क़िस्म के ऐसे सख्त रवैया से बचना चाहिए जिसकी वजह से बद अख़लाक़ी या आपसी ताल्लुक़ खराब होने का ख़तरा हो.
    उसे इत्मीनान रखना चाहिए किउ दीनी काम और मजालिस में आने जाने और दीनदार लोगों के साथ मेलजोल रखने से शौहर की इस्लाह का बहुत इमकान मौजूद है.

    हवाला:
    तालीमे अहकाम
    बहस अम्र बिलमारूफ़ व नही अज़ मुनकर, पेज 442
    आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई

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