इमाम अली अ. ने फ़ेदक वापस क्यों नहीं दिया ?
Question
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जवाब ( 1 )
बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम
यह सवाल अस्ल में फ़ेदक को न समझने की बिना पर पैदा हुआ है, फ़ेदक का मस’अला सिर्फ़ ज़मीन और कुछ खजूर के पेड़ों का नहीं है, फ़ेदक का मस’अला अस्ल में विलायतो इमामत व ख़िलाफ़त है, फ़ेदक एक अलामत (symbol) है. अस्ल मस’अला यह है कि अमीरुल मोमेनीन अली अ. इमामे बर हक़ हैं, ख़लीफ़-ए-बिला फ़स्ल (नबी अ. के बाद बिना किसी फ़ासले के उनके ख़लीफ़ा) हैं, जो भी इसे न माने वह भी फ़ेदक का ग़ासिब (हड़पने वाला) है.
लिहाज़ा एक मर्तबा हारुन-अल-रशीद ने इमामे मूसा काज़िम अ. से कहा आप फ़ेदक की चारों हदें तय कर दीजिये, मैं फ़ेदक आपको लौटाकर इस मामले को हमेशा के लिए ख़त्म करना चाहता हूँ.
इमाम अ. ने फ़रमाया: तू ऐसा नहीं कर सकेगा.
उसने कहा: क्यों नहीं, आप उसकी चौहद्दी तो बताइए, मैं लौटाकर इस मामले को ख़त्म कर दूँगा.
इमाम ने फ़रमाया कि फ़ेदक की चौहद्दी जानना चाहते हो तो सुनो:
امّا الحدّ الاوّل فعَدَن… उसकी पहली हद अदन है
والحدّ الثّانی سمرقند … और दूसरी हद समर्क़ंद है
و الحدّ الثّالث افریقیة… और तीसरी हद अफ़्रीका है
و الرّابع سیف البحر مما یَلِی الجُزُر و ارمینیة …और चौथी हद सैफ़ुल बह्र (समंदर), उसके जज़ीरे (आइलैंड) और अर्मेनिया है
فتغیّر وجه الرّشید و قال ایهاً … यह सुनकर हारुन के चेहरे का रंग बदल गया और कहने लगा: عجب ؛ فلم یبق لنا شیء …
अजब! फिर तो हमारे लिए कुछ बचा ही नहीं
हवाले:
1. सिब्त इब्ने जौज़ी, तज़्केरतुल ख़वास, पे. 350, नजफ़, मंशूरातुल मकतबतुल हैदरीयह, 1382 हि.
2. इब्ने शहरे आशोब, मनाकिबे आले अबीतालिब, जि. 4, पे. 320, क़ुम, मोअस्सस-ए-इन्तेशाराते अल्लामा
3. अबुल फ़रज इस्फ़हानी, मक़ातिलुत्तालेबीन, पे. 350, नजफ़, मंशूरातुल मकतबतुल हैदरीयह, 1385 हि.
4. महदी पेशवाई, सीर-ए-पेश्वायान, पे. 461, मोअस्सस-ए-इमामे सादिक़ अ., क़ुम, 1390 हि. शम्सी