क्या इमामे हसन अ. ने काफ़ी औरतों से शादी करके उन्हें तलाक़ दी थी?
Question
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जवाब ( 1 )
बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम
अफ़सोस का मक़ाम है कि इस्लाम के हदीसी सोर्सेज़ के सामने पेश आने वाली बड़ी आफ़तों में से एक आफ़त, जाली हदीसें गढ़ कर उन्हें सहीह हदीसों के बीच में दर्ज करना है. इस काम के पीछे राजनैतिक व धार्मिक आदि कारण थे और कभी यह काम अमवी और अब्बासी शासकों की नापसंद शख़्सियतों को सही दिखाने के मक़सद से और कभी क़द्र करने के लाएक़ शख़्सियतों का चेहरा ख़राब करके पेश करने के मक़सद से अंजाम दिया जाता था.
इसलिए जाली हदीसों में से सहीह हदीसों को अलग करना बहुत ही अहेम लेकिन मुश्किल काम है.
इमामे हसन मुजतबा अ. एक ऐसी शख़्सियत हैं जिन्हें ज़हर दिया गया और गढ़ी हुई हदीसों के हमलों का निशाना बने हैं लेकिन ख़ुशक़िस्मती से अहमक़ दुश्मनों ने इस बार उन पर कई शादियाँ और ज़्यादा तलाक़ देने का इलज़ाम लगाया है. यह एक ऐसी तोहमत है जिसका निराधार होना पूरी तरह स्पष्ट है.
इस तरह की कुछ रिवायतों में आया है कि इमाम अली अ. ने एक मर्द से फ़रमाया जो अपनी बेटी के लिए हसन अ., हुसैन अ. और अब्दुल्लाह बिन जाफ़र के साथ रिश्ता देने के सिलसिले में मशवरा करने आया था कि: जान लो कि हसन अ. ज़्यादा तलाक़ देता है, अपनी बेटी की शादी हुसैन अ. से करना क्योंकि वह तेरी बेटी के लिए बेहतर है.(1)
एक और रिवायत में आया है कि इमामे सादिक़ अ. ने फ़रमाया: हसन बिन अली अ. ने पचास बीवियों को तलाक़ दी है, यहाँ तक कि हज़रत अली अ. कूफ़े में खड़े हुए और फ़रमाया: ऐ कूफ़ियों! हसन को अपनी बेटी का हाथ न देना क्योंकि वह ज़्यादा तलाक़ देता है.
एक शख़्स उठा और कहा: ख़ुदा की क़सम! हम ऐसा ही करेंगे क्योंकि वह रसूलुल्लाह स. और फ़ातिमा ज़हरा स. के फ़रज़न्द हैं, अगर चाहें तो अपनी बीवी को रखें और चाहें तो तलाक़ दें.(2)
एक और रिवायत में आया है कि इमाम बाक़िर अ. ने फ़रमाया: अली अ. ने कूफ़ियों को संबोधित करते हुए फ़रमाया: हसन अ. को कोई बेटी न दे क्योंकि वह ज़्यादा तलाक़ देता है.(3)
अहलेसुन्नत की कुछ तारीख़ी किताबों जैसे अन्साबुल अशराफ़ (4), क़ूतुल क़ुलूब (5), एहयाउल उलूम (6)और इब्ने अबिल हदीद मोतज़ेली की शरहे नहजुल बलाग़ा (7) वग़ैरह में भी यही बातें दोहरायी गयी हैं चूँकि कहावत है कि झूठ जितना ही बड़ा हो उसे मानना उतना ही आसान होता है, कुछ गढ़ी हुई रिवायतों में हज़रत अ. की तलाक़ शुदा बीवियों की संख्या तीन सौ तक पहुंचा दी गयी है (8) कि यह सब रिवायतें ज़ईफ़ और भरोसे के क़ाबिल नहीं हैं बल्कि अक़्ल और तर्क के विरुद्ध हैं.
बहुत से तारीख़ी और एतेक़ादी सुबूत मौजूद हैं जो ज़िक्र की गयी बातों के सही न होने का प्रमाण हैं;जिनमें से कुछ की ओर हम यहाँ नीचे इशारा कर रहे हैं:
1.हज़रत इमाम हसन अ. की विलादत दूसरी या तीसरी हिजरी में 15 रमज़ानुल मुबारक को हुई और 28 सफ़र 49 हिजरी को शहीद हुए हैं. आपकी उम्रे शरीफ़ 46 या 47 से ज़्यादा नहीं थी. फ़र्ज़ करें अगर हज़रत अ. की पहली शादी बीस साल की उम्र में हुई हो तो आप अ. के वालिदे गिरामी की शहादत के साल 40 हिजरी यानी 17,18 साल की अवधि में यह शादियाँ और तलाक़ हुए होने चाहिए. जबकि इमाम हसन अ. ने अपने वालिदे गिरामी के पाँच साल के शासनकाल के दौरान तीन जंगों यानी जंगे जमल, सिफ़्फ़ीन और नहेरवान में ऐलानिया तौर पर शिरकत की है और इसके पेशे नज़र कि हज़रत अ. ने बीस बार मदीने से पैदल चलकर हज के फ़राएज़ अंजाम दिए हैं, तो यह कैसे मुमकिन है कि उनके पास इतनी शादियाँ करने की फ़ुर्सत हो. इस लिहाज़ से इस तरह की रिवायतों को मानना अक़्ल के ख़िलाफ़ है.
2.अधिकतर रिवायतें, जो हदीस की किताबों में नक़्ल हुई हैं इमामे सादिक़ अ. से मनकूल हैं. यानी यह बात इमामे हसन अ. के ज़माने के लगभग एक सदी बाद पेश की जाती है क्योंकि इमाम जाफ़र सादिक़ अ. की शहादत 148 हिजरी में और इमामे हसन अ. की शहादत 50 हिजरी में हुई है. अगर हक़ीक़त में यह रिवायतें इमामे सादिक़ अ. से हों तो सोचने का मक़ाम है कि एक सदी गुज़रने के बाद इन रिवायतों को बयान करने से इमाम सादिक़ अ. का क्या मक़सद है? क्या वह इमाम हसन अ. के घरेलू मामले को आम करना चाहते थे? ताज्जुब की बात है कि यह बात उसी ज़माने में, अहलेबैते अतहार अ. के जानी दुश्मन मंसूरे दवानिक़ी की ज़बान पर आती है. मशहूर इतिहासकार मसऊदी ने अपनी किताब “मुरूजुज़ ज़हब” में, ख़ुरासानियों के एक इज्तेमाअ में मंसूर की एक तक़रीर को यूँ नक़्ल किया है: “ ख़ुदा की क़सम! हमने अबूतालिब के बेटों को ख़िलाफ़त से कभी नहीं रोका और किसी सूरत में उन पर ऐतेराज़ नहीं किया है, यहाँ तक कि अली इब्ने अबी तालिब अ. ने ख़िलाफ़त को अपने हाथों में ले लिया और जब हुकूमत चलाने में कामयाब न हुए तो हकमियत के सामने हथियार डाल दिए. लोगों में एख़्तिलाफ़ पैदा हुआ, चेमी गोइयाँ होने लगीं, यहाँ तक कि एक गिरोह ने उन पर हमला किया और उन्हें क़त्ल कर डाला. उनके बाद, हसन बिन अली अ. उठे. वह ऐसे शख़्स नहीं थे कि अगर कोई माल पेश किया जाता, तो उसे लेते. मुआविया ने चालबाज़ी और हीले से उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाया और उसके बाद उन्हें पद से हटाया. उन्होंने औरतों की तरफ़ रुख़ किया. कोई ऐसा दिन नहीं था जब वह शादी न करते या तलाक़ न देते,यहाँ तक कि बिस्तर पर इस दुनिया से चले गए.(9)
3.अगर यह बात हक़ीक़त होती, तो उनके जानी दुश्मनों और बहाना तलाश करने वालों को आप अ. की ज़िन्दगी में ही इस पर ऐतेराज़ करना चाहिए थे, जबकि वो आपके बारे में मामूली चीज़ों, यहाँ तक कि आप अ. के लिबास के रंग पर भी ऐतेराज़ करते थे, अगर यह बात सही होती तो दुश्मनों के पास एक बड़ा बहाना और कमज़ोर बिंदु हाथ आता और ज़रूर उस पर उंगली उठाते लेकिन उस ज़माने के बारे में ऐसी कोई बात नक़्ल नहीं हुई है.
4.तारीख़ की किताबों में इमाम हसन अ. की बीवियों, बच्चों और दामादों की जो संख्या नक़ल की गयी है, वह हज़रत अ. की बीवियों की संख्या से मेल नहीं खाती. आपकी ज़्यादा से ज़्यादा अवलाद की तादाद 22 और कम से कम 12 बताई गयी है. आपकी बीवियों के तौर पर केवल 13 नाम ज़िक्र हुए हैं लेकिन उनमें से तीन बीवियों के हालात के अलावा किसी की तफ़सील पता नहीं है, इसके अलावा तारीख़ की किताबों में आप अ. के तीन दामादों के अलावा किसी का ज़िक्र नहीं हुआ है.(10)
5.तलाक़ की बुराई के बारे में बहुत सी रिवायतें हैं. यह रिवायतें शिया और अहले सुन्नत की हदीस की किताबों में बार-बार नक़्ल हुई हैं. रसूले ख़ुदा स. ने फ़रमाया: “ख़ुदा के नज़दीक हलाल कामों में सबसे नापसंद काम तलाक़ है” (11) इमाम सादिक़ अ. ने फ़रमाया: शादी करनी चाहिए लेकिन तलाक़ नहीं देना चाहिए क्योंकि तलाक़ अर्शे इलाही को हिलाकर रख देती है” (12) इसके अलावा हज़रत इमाम सादिक़ अ. अपने वालिद से नक़्ल करते हैं: “ख़ुदावन्दे मुत’आल उस शख़्स को दुश्मन रखता है जो ज़्यादा तलाक़ देता हो और जिंसी लज्ज़त की विविधता के पीछे जाता हो”(13)
इसके पेशे नज़र क्या मुमकिन है कि एक मासूम इमाम बार-बार ऐसा काम करे और उनके वालिद भी उन्हें इस काम से न रोक सकें!!!
6.इमाम हसन अ. अपने ज़माने के सबसे इबादतगुज़ार और पारसा इन्सान थे.(14) वह हर वक़्त इस तरह अपने परवरदिगार से राजो नियाज़ करते थे: “मैं अपने परवरदिगार से शर्म व हया महसूस करता हूँ कि मैं इस हालत में उससे मुलाक़ात करूँ जबकि मैं उसके घर की तरफ़ पैदल न गया होऊँ” (15) आप अ. बीस बार मदीने से पैदल हज पर चले गए और हज के आमाल बजा लाये हैं, यह कैसे मुमकिन है कि आप अ. इस तरह के काम करते हों?
7.“मितलाक़” ज़्यादा तलाक़ देने की सिफ़त जाहिलियत के दौर में भी निंदनीय थी. जब हज़रत ख़दीजा स. ने अपने चचाज़ाद भाई वरक़ा से अपने रिश्ता देने वालों के बारे में मशवरा किया कि उनमें से किसको हाँ करें तो वरक़ा ने जवाब में कहा: शैबा काफ़ी बदगुमान शख्स है और अक़बा बूढ़ा है, अबूजहल एक घमंडी और कंजूस इन्सान है और सल्त एक मितलाक़ (ज़्यादा तलाक़ देने वाला) है. उस वक़्त हज़रत ख़दीजा अ. ने कहा: “इन पर ख़ुदा की लानत हो, क्या तुम जानते हो कि किसी और मर्द ने मेरा रिश्ता दिया है”
ध्यान देने योग्य बात यह है कि जो सिफ़त जाहिलियत के दौर में भी निंदनीय थी और उस ज़माने की औरतें तैयार नहीं थीं कि किसी “मितलाक़” के साथ शादी करें तो हज़रत अली अ. ने अपने एक ज़ाहिद व परहेज़गार बेटे के बारे में ऐसा वर्णन किया हो? और एक मासूम इमाम इस तरह की नापसंद सिफ़त रखता हो जो ख़ुदा के ग़ज़ब का सबब बनती हो?!
यह कुछ सुबूत थे जो इन रिवायतों के निराधार होने का प्रमाण हैं. इस आधार पर इन ज़ईफ़ रिवायतों और बातों को एक ऐसी शख़्सियत के बारे में क़ुबूल नहीं किया जा सकता जिनकी कई रिवायात के मुताबिक़ पैग़म्बरे इस्लाम ने तारीफ़ की हो. (16)
अधिक जानकारी के लिए निम्नलिखित किताबों का अध्ययन किया जा सकता है:
1.हयातुल इमामिल हसन अ., लेखक: बाक़िर शरीफ़ अल-क़रशी,जि.2,पे.457-472 (दारुल कुतुबिल इल्मियह)
2.निज़ामे हुक़ूक़े ज़न दर इस्लाम, लेखक: शहीद मुतह्हरी, पे. 306-309
3.ज़िन्दगिये इमामे हसन अ., लेखक: महदी पेशवाई, पे. 31-39
4.अल-इमामुल मुजतबा अ., लेखक: हसन अल-,मुस्तफ़वी, पे. 228-234
5.अज़ गोशे व किनारे तारीख़, लेखक: सैय्यद अली शफ़ीई, पे. 88
6.ज़िन्दगिये इमामे मुजतबा अ., लेखक: सैय्यद हाशिम रसूली महल्लाती, पे. 469-484
7.हक़ाएक़ व पिन्हान, लेखक: अहमद ज़मानी, पे. 331-354
हवाले:
1.अल-बरक़ी, महासिन,जि.2,पे.601
2.अल-काफ़ी,जि.6,पे.56,हदीस 4 व 5
3.दआएमुल इस्लाम,जि.2,पे.257,हदीस980
4.अन्साबुल अशराफ़,जि.3,पे.25
5.क़ूतुल क़ुलूब,जि.2,पे.246
6.महज्जतुल बैज़ा,जि.3,पे.69
7.शरहे नहजुल बलाग़ा,जि.3,पे.69
8.मुलाहज़ा हो, क़ूतुल क़ुलूब, अबू तालिबे मक्की
9.मुरूजुज़-ज़हब,जि.3,पे.300
10. हयातुल इमामिल हसन अ.,जि.2,पे.463-469 व पे. 457
11. सुनने अबी दाऊद, जि.2,पे. 632, हदीस 2178
12. वसाएलुश-शिया, जि.15,पे.268; मकारिमुल अख़लाक़, पे. 225. تزوجوا و لا تطلقوافان الطلاق یھتز منہ العرش.
13. वसाएलुश-शिया, जि.15,पे.267, हदीस 3, ان اللہ عزوجل یبغض کل مطلاق و ذواق
14. फ़राएदुस-समतैन,जि.2,पे.68, बिहारुल अनवार,जि.16,पे.60
15. बिहारुल अनवार,जि.43,पे.399, انی لاستحیی من ربى ان القاہ ولم امش الی بیتہ ، فمشی عشرین مرۃ من المدینۃ على رجلیہ.
16. मक़ाला, तअम्मुली दर अहादीसे कसरते तलाक़, महदी महरीज़ी, पयामे ज़न मैगज़ीन, तीर महीना (ईरानी कैलेंडर का चौथा महीना) 1377 हिजरी शम्सी, अंक. 76.
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