जवाब ( 1 )

  1. इंसान को चाहिये कि नमाज़ की हालत में किसी को सलाम न करे और अगर कोई दूसरा शख़्स उसे सलाम करे तो ज़रूरी है कि जवाब दे लेकिन जवाब सलाम की मानिन्द होना चाहिये यानी ज़रूरी है कि अस्ल सलाम पर इज़ाफ़ा न हो मसलन जवाब में ये नहीं कहना चाहिये सलामुन अलैकुम व रहमतुल्लाहे व बरकातुहू बल्कि एहतियाते लाज़िम की बिना पर ज़रूरी है कि जवाब में अलैकुम या अलैक के लफ़्ज़ को सलाम के लफ़्ज़ पर मुक़द्दम न रखे। अगर वह शख़्स कि जिसने सलाम किया है उसने इस तरह न किया हो बल्कि एहतियाते मुस्तहब यह है कि जवाब मुकम्मल तौर पर दे जिस तरह कि उसने सलाम किया हो मसलन अगर कहा हो सलामुन अलैकुम तो जवाब में कहे सलामुन अलैकुम और अगर कहा हो अस्सलामो अलैकुम तो कहें अस्सलामो अलैकुम और अगर कहा हो सलामुन अलैक तो कहे सलामुन अलैक लेकिन अलैकुमुस्सलाम के जवाब में जो लफ़्ज़ चाहे कह सकता है।

    हवाला :  तौज़ीहुल मसाइल, आयतुल्लाह सीस्तानी, मसला 1146

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