जवाब ( 1 )

  1. जुमा की नमाज़ सुब्ह की नमाज़ की तरह दो रक्अत की है। इसमें और सुब्ह की नमाज़ में फ़र्क़ यह है कि इस नमाज़ से पहले दो ख़ुत्बे भी हैं। जुमा की नमाज़ वाजिबे तख़्ईरी है। इससे मुराद यह है कि जुमा के दिन मुकल्लफ़ को इख़्तियार है कि अगर नमाज़े जुमा के शराइत मौजूद हों तो जुमा की नमाज़ पढ़े या ज़ोहर की नमाज़ पढ़े। लिहाज़ा अगर इंसान जुमा की नमाज़ पढ़े तो वह ज़ोहर की नमाज़ की किफ़ायत करती है (यानी फिर ज़ोहर की नमाज़ पढ़ना ज़रूरी नहीं) ।

    आयतुल्लाह सीस्तानी, तौज़ीहुल मसाएल, मसला 740

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