अगर मुसाफिर क़स्र के हुक्म को जानता हो लेकिन गुमान करे कि सफर 8 फ़र्सख़ नहीं है और मुकम्मल नमाज़ पढ़ ले तो क्या चुका है ?

Question

जवाब ( 1 )

  1. अगर एक मुसाफ़िर जानता हो कि उसे नमाज़ क़स्र पढ़ना चाहिये और वह इस गुमान में पूरी नमाज़ पढ़ ले कि उसका सफ़र आठ फ़र्सख़ से कम है तो जब उसे पता चले कि उसका सफ़र आठ फ़र्सख़ का था तो ज़रूरी है कि जो नमाज़ पूरी पढ़ी हो उसे दोबारा क़स्र पढ़े और अगर उसे इस बात का पता नमाज़ का वक़्त गुज़र जाने के बाद चले तो क़ज़ा ज़रूरी नहीं।

    हवाला :  तौजीहुल मसाइल, आयतुल्लाह सीस्तानी, मसला 1370

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