वालेदैन और औलाद के आक़ करने का क्या मतलब है?
Question
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जवाब ( 1 )
बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम
लोग़वी और इस्तेलाही मानी (शाब्दिक और पारिभाषिक अर्थ)
वालेदैन के तरफ़ से आक़ कर देने के मानी (अर्थ) यह हैं कि औलाद, माँ बाप को अपनी ज़बान और रवय्ये से तकलीफ़ पहुँचायें (1) हालांकि “आक़ करने” के लोग़वी (शाब्दिक) माने (अर्थ) काटना, तोड़ना, अलग करना हैं , इसलिए माँ बाप के आक़ करने का मतलब, उनका औलाद से सारे रिश्ते नाते तोड़ लेना है (2)
जनाब मुल्ला मोहम्मद नराक़ी ने वालेदैन के आक़ करने को क़त्ए रहेम (रिश्ते तोड़ने) की सबसे बड़ी क़िस्म बताया है और उनका मानना है की जितनी क़त्ए रहेम (रिश्ता तोड़ने) की मज़म्मत (निंदा) की गई है, उतनी ही वालेदैन (माँ बाप) की तरफ़ से आक़ होने की मज़म्मत हुई है.(3)
वालेदैन से आक़ होना, यानी माँ बाप, दोनों या इनमें से किसी एक को किसी भी तरह की कोई तक्लीफ़ पहुँचाना या उनके हुक़ूक़ अदा न करना है.
रेवायात में इसकी जो मिसालें (उदाहरण) बताई गई हैं वह कुछ इस तरह हैं :
ग़ुस्से से देखना ,(4)
हुक़ूक़ (अधिकारों) को पामाल करना (5),
उनकी ख़्वाहिश को पूरा न करना,
उनका हुक्म न मानना (6)
मुल्ला मोहम्मद नराक़ी का कहना है की जिस तरीक़े से भी वालेदैन (माँ बाप) को तकलीफ़ पहुंचाई जाए, वह आक़ हिसाब होगा (7)
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की एक रेवायत में है कि वालेदैन को उफ़्फ़ कहना माँ बाप से आक़ होने का सबसे छोटा दर्जा है अगर इससे भी कम कुछ होता तो अल्लाह उससे भी रोकता .(8)
आसार (नतीजे)
वालेदैन से आक़ होना एक अखलाक़ी (नैतिक) बुराई है और रेवायात में इसे गुनाहे कबीरा (बहुत बड़ा गुनाह) कहा गया है. (9) और इसके आसार (नतीजे) इस तरह हैं :
जन्नत और यहां तक कि उसकी ख़ुशबू से भी महरूम (वंचित) होना. (10)
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की रेवायत के मुताबिक़, क़यामत के दिन जन्नत के पर्दे हटाए जाएंगे और उसकी ख़ुशबू पाँच सौ साल दूर तक हर जानदार को महसूस होगी सिर्फ़ वह लोग इस ख़ुशबू को महसूस नहीं कर सकेंगे जिनको वालेदैन ने आक़ किया होगा. (11)
इसी तरह रेवायत में यह भी आया है कि यह लोग जन्नत में दाख़िल नहीं होंगे.(12)
जहन्नम में दाख़िल होना (13)
नमाज़ क़बूल न होना ,रेवायात में आया है कि अगर कोई अपने ज़ालिम माँ बाप को दुश्मनी की नज़र से देखेगा तो ख़ुदा उसकी नमाज़ को क़बूल नहीं करे गा.(14) दुआ का क़बूल न होना .(15)
दुनिया में अज़ाब (सज़ा) ,पैग़म्बर (स.) की रेवायात के मुताबिक़ वालेदैन से आक़ होना एक ऐसा गुनाह है कि जिस की सज़ा इन्सान को दुनिया में ही मिलती है.(16)
मुल्ला अहमद नराक़ी का कहना है की तजुर्बे (अनुभव) से साबित (सिद्ध) हुआ है कि वालेदैन से आक़ होने का नतीजा उम्र में कमी, ज़िन्दगी में लज़्ज़त बाक़ी न रहना, ग़रीबी, मुश्किल (कठिनाई) से जान देना हैं.(17)
कब्र में अज़ाब , मुल्ला मोहम्मद नराक़ी कहते हैं कि अगर किसी की माँ उससे नाराज़ हो तो उसके लिए मौत और कब्र में बहुत सख्त अज़ाब होगा.(18)
माँ बाप के मरने के बाद भी आक़ हो जाना
रेवायतों के मुताबिक़ वालेदैन से आक़ होना उनकी ज़िन्दगी से मख़्सूस नहीं है बल्कि उनकी मौत के बाद भी हो सकता है.
जिस तरह वालेदैन के साथ नेकी (अच्छा सुलूक) करना सिर्फ़ उनकी ज़िन्दगी तक महदूद (सीमित) नहीं है, मुमकिन है कोई माँ बाप की ज़िन्दगी में उनके साथ मेहरबान हो लेकिन उनके मरने के बाद आक़ हो जाये जैसे कोई माँ बाप के मरने के बाद उनका क़र्ज़ अदा न करे और उन के गुनाहों की माफ़ी के लिए दुआ न करे,
इसी तरह यह भी मुमकिन है की कोई आदमी वालेदैन की ज़िन्दगी में आक़ हुआ हो लेकिन उनके मरने के बाद आक़ न हो (19)
मुल्ला अहमद नराकी की नज़र में,आक़ होने से बचने के लिए वालेदैन की कठिनाइयों जैसे उनका बच्चों के लिए रातों को जागना और परेशानी उठाना इन बातों को याद करना फ़ायदेमंद है और इसी तरह यह भी ध्यान रहे कि बाप की बद् दुआ क़बूल होती है.(20)
औलाद के हुक़ूक़ :
जिस तरह औलाद पर वालेदैन के हुक़ूक़ (अधिकार) हैं और उनके अदा न करने से औलाद आक़ हो जाती है उसी तरह औलाद के भी कुछ हुक़ूक़ (अधिकार) हैं, अगर वालेदैन उन्हें अनदेखा करें तो वह भी औलाद की तरफ़ से आक़ हो जाते हैं.
औलाद के कुछ हुक़ूक़ (अधिकार) इस तरह हैं.
अदब सिखाना :
इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं कि :
’’وَ أَمّا حَقّ وَلَدِكَ فَتَعْلَمُ أَنّهُ مِنْكَ وَ مُضَافٌ إِلَيْكَ فِي عَاجِلِ الدّنْيَا بِخَيْرِهِ وَ شَرّهِ وَ أَنّكَ مَسْئُولٌ عَمّا وُلّيتَهُ مِنْ حُسْنِ الْأَدَبِ وَ الدّلَالَةِ عَلَى رَبّهِ وَ الْمَعُونَةِ لَهُ عَلَى طَاعَتِهِ فِيكَ وَ فِي نَفْسِهِ فَمُثَابٌ عَلَى ذَلِكَ وَ مُعَاقَبٌ فَاعْمَلْ فِي أَمْرِهِ عَمَلَ الْمُتَزَيّنِ بِحُسْنِ أَثَرِهِ عَلَيْهِ فِي عَاجِلِ الدّنْيَا الْمُعَذّرِ إِلَى رَبّهِ فِيمَا بَيْنَكَ وَ بَيْنَهُ بِحُسْنِ الْقِيَامِ عَلَيْهِ وَ الْأَخْذِ لَهُ مِنْهُ‘‘
औलाद का हक़ यह है कि आपको ध्यान रखना चाहिए कि वह आप से हैं,औलाद में अच्छाई हो या बुराई उसको आप ही से जोड़ा जायेगा,आप उसके अदब,अल्लाह की मारेफ़त, इबादत और दीनी मामलात में ज़िम्मेदार हैं और अपनी ज़िम्मेदारी में कमी करने की वजह से आप सज़ा के भी हक़दार हैं,
इसलिए औलाद की ऐसी तरबियत करो कि दुनयावी ज़िंदगी में आप उन पर गर्व करें और आपकी शराफ़त और पाकीज़गी की तस्वीर बनें और आख़ेरत में अल्लाह के सामने शर्मिंदगी का सबब न हों। (21)
अच्छा नाम रखना :
बाप के ऊपर औलाद का हक़ यह है कि उसका अच्छा नाम रखे जैसा कि इमाम अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं :
حَقُّ الْوَلَدِ عَلَى الْوَالِدِ أَنْ یحَسِّنَ اسْمَهُ وَ یحَسِّنَ أَدَبَهُ وَ یعَلِّمَهُ الْقُرْآنَ
बाप पर औलाद का हक़ यह है कि उसका अच्छा नाम रखे, उसको अदब सिखाये और क़ुरान की तालीम (शिक्षा) दे. (22)
औलाद को ख़ुश रखना
इब्ने अब्बास ने रसूले अकरम (स.) से रेवायत बयान की है कि आप (स.) ने फ़रमाया :
من دخل السّوق فاشترى تحفة فحملها الى عیاله کان کحامل صدقة الى قوم محاویج و لیبدأ بالاناث قبل الذّکور فانّه من فرّح ابنته فکانّما اعتق رقبة من ولد اسماعیل و من اقرّ عین ابن فکانّما بکى من خشیة اللَّه و من بکى من خشیة اللَّه ادخله جنّات النّعیم
जो भी बाज़ार जाये और अपने बच्चों के लिए तोहफ़ा (उपहार) ख़रीद कर घर ले जाये, वह इस तरह से है कि उसने गरीबों की मदद की, और जब तोहफ़ा लेकर जाये तो पहले बेटी को दे क्योंकि जो अपनी बेटी को ख़ुश करेगा वह इस तरह से है कि उसने इस्माईल की औलाद में से एक गुलाम आज़ाद किया है और जिसने अपने बच्चे की आँखों में तोहफ़ा देने से ख़ुशी पैदा की वह इस तरह से है कि उसने आल्लाह के डर से गिरया (रोना) किया हो और जो अल्लाह के डर से रोता है अल्लाह उसको जन्नत में दाख़िल करता है.(23)
सही रोज़गार का इंतेख़ाब (चयन) करना :
किसी ने हज़रत रसूले अकरम (स.) से सवाल किया, या रसूल अल्लाह ! मेरे बेटे का मुझ पर क्या हक़ है ? रसूले अकरम (स.) ने फ़रमाया : उसका अच्छा नाम रखो , अदब सिखाओ , और उसके लिए मुनासिब रोज़गार इन्तेख़ाब (चयन) करो. (24)
हवाले :
1 . नराक़ी, मेराजुस्सआदह, पे. 532
2 . फ़राहीदी,अल-एैन,पे. 63
3 . नराक़ी, जामेउस्सआदह,जि. 2,पे. 262
4 . कुलैनी,अल-काफ़ी,जि. 2,पे. 349
5 . तमीमी आमेदी,ग़ोररुल-हिकम, पे. 679
6 . नूरी,मुस्तदरक-अल-वसाएल, जि. 15,पे. 194
7 . नराक़ी, मेराजुस्सआदह,पे. 532
8 . कुलैनी,अल-काफ़ी,जि. 2,पे. 349
9 . कुलैनी,अल-काफ़ी,जि. 2,पे. 276
10 . कुलैनी,अल-काफ़ी,जि. 2,पे. 349
11 . कुलैनी,अल-काफ़ी,जि. 2,पे. 349
12 . हमीरी,क़ुर्बुल-इस्नाद,पे. 82
13 . कुलैनी,अल-काफ़ी,जि. 2,पे.348
14 . कुलैनी,अल-काफ़ी,जि. 2,पे. 349
15 . कुलैनी,अल-काफ़ी,जि. 2,पे.448
16 . पाइन्देह,नहजुल फ़साहा,पे.162
17 . नराक़ी,मेराजुस्सआदह,पे.532
18 . नराक़ी,जामेउस्सआदह,जि. 2,पे.263
19 . कुलैनी,अल-काफ़ी,जि. 2,पे. 163
20 . नराक़ी,मेराजुस्सआदह,पे.532
21 . मोहम्मद तक़ी फ़लसफ़ी,अल-हदीस,जि. 2,पे.214
22 . नहेजुल बलाग़ा,हिकमत 399
23 . अल-हदीस,तरबियती रेवायात,जि. २,पे.227
24 . अल-हदीस,तरबियती रेवायात,जि. 1,पे.371