जवाब ( 1 )

  1. जब भी इंसान हज़रत रसूले अकरम स.अ. का इस्मे मुबारक मसलन मोहम्मद (स) या अहमद (स) या आपका लक़ब और कुन्नियत मसलन मुस्तफ़ा (स0) और अबुल क़ासिल (स0) ज़बान से अदा करे या सुने तो ख़्वाह वह नमाज़ में ही क्यों न हो मुस्तहब है कि सलवात भेजे।

    हवाला :  तौज़ीहुल मसाइल, आयतुल्लाह सीस्तानी, मसला 1133

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