तोहमत (इलज़ाम) लगाने का कफ़्फ़ारा क्या है?
Question
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जवाब ( 1 )
बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम
ग़ीबत,तोहमत और बोहतान वग़ैरह अस्ल में लोगों के अधिकारों का हनन है, अल्लाह अपने हुक़ूक़ तो माफ़ कर देता है लेकिन लोगों के हुक़ूक़ को माफ़ नहीं करता, उसके लिए ज़रूरी है कि जो हक़ बर्बाद हुआ है जहाँ तक मुमकिन हो उसकी भरपाई की जाये और हक़दार से उसके लिए माफ़ी मांगी जाये और उसकी रेज़ायत और ख़ुशनूदी हासिल की जाये, उससे हलालियत तलब की जाये (यानी उससे माफ़ी मांगकर उस हराम काम के असर को ख़त्म किया जाये),यह उस सूरत में है जब उस तक पहुँचना मुमकिन हो लेकिन अगर किसी वजह से उस तक पहुँच न हो जैसे कि उसका इन्तेक़ाल हो चुका हो या वो किसी दूसरे शहर और मुल्क में चला गया हो या पास ही में हो लेकिन इस तरह की बात उससे करने में फ़साद ज़्यादा हो और पहले से ज़्यादा दुश्मनी बढ़ने का ख़तरा हो तो उसके लिए दुआएँ करे, उसके लिए अल्लाह से इस्तेग़फ़ार करे, उसकी तरफ़ से सदक़ा दे और नेक काम करे, उसकी तरफ़ से ज़ियारतें करे…वग़ैरह और अल्लाह की रहमत से नाउम्मीद न हो कि उसका इरशाद है: قل یا عبادی الّذین أسرفوا علی أنفسهم لا تقنطوا مِن رحمة الله إنّ الله یغفر الذّنوب جمیعاً
कह दीजिये कि ऐ मेरे बन्दों! जिन्होंने अपने आप पर ज़्यादती की है वो अल्लाह की रहमत से मायूस न हों कि बेशक वह सारे गुनाहों को माफ़ करता है (सूरए ज़ोमर,आयत 54)