हम ईरान में रहते हैं और हर साल ईद के मौक़े पर यहाँ चाँद के बारे में इख़्तिलाफ होता है और मैं आयतुल्लाह सीस्तानी का मुक़ल्लिद हूँ, दफ़्तर से पूछते हैं तो विरोधात्मक बातें करते हैं. आगा की तरफ़ से आज ईद नहीं हैं, रहबर की तरफ़ से आज ईद है, हम निरंतर शक में रहते हैं कि क्या करें इसलिए हर साल इसी तरह की खींचा तानी रहती है, हमारा रोज़ा और नमाज़े ईद और शबे क़द्र के आमाल के मुश्तरक रहते हैं, क्या करें लिहाज़ा हमने तक़लीद छोड़कर रहबर की कर ली तो क्या यह सही है?
जवाब
बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम
सिर्फ़ इस आधार पर तक़लीद को बदला नहीं जा सकता, तक़लीद आलमियत के आधार पर की जाती है, मेयार आलमियत और दूसरी शर्तें हैं यानी आप उसकी तक़लीद करें जो आपकी नज़र में आलम है और तक़लीद की दूसरी शर्तें उसमें पूरी तरह से पायी जाएँ जैसे ज़्यादा मुत्तक़ी और परहेज़गार होना.
...अब अगर आप कुछ आयाते एज़ाम में आलमियत का एहतेमाल दे रहे हैं और बाकी शर्तें तक़लीद में वो सारे बराबर हैं, यानी सबके अन्दर आलमियत का एहतेमाल हो और परहेज़गारी व तक़वा में सब बराबर हैं तो किसी की भी तक़लीद की जा सकती हैं.